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Wednesday, September 16, 2009

हर सजा हमें मंज़ूर है - Har Saza Hamein Manzoor Hai

हर सांस में उसका नूर है,
पर दीद से कितना दूर है,
चलो चाँद से बात करें,
वो क्यों इतना मग़रूर है,
रोज़ ० शब् पत्थर सोते,
नक्काश मगर मजबूर है,
जाना खली हाथ है सबको,
ज़माने का दस्तूर है,
दगा कलम से नहीं करेंगे,
हर सजा हमें मंज़ूर है,
पता पूछती है रुसवाई
नाम जिसका मशहूर है,
दर्द वो जाने क्या ज़ुल्मत का,
हर पल जहाँ पे नूर है,
तुम भी सो जाओ अहसास,
अभी शब् जरा मखमूर है...!!!