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Sunday, September 27, 2009

Kuch Kehna Tha

कुछ कहना था, उसे भी और मुझे भी,
उस ने ये चाहा मैं कुछ कहूँ, मेरी ये जिद्द के बात वो करे,

यही सोचते सोचते ज़माने बीत गए,
न उस की आना टूटी, और ना मेरी जिद्द,
उस की आना फसील थी, तो मेरी भी चट्टान,

आना और जिद्द के इसी ताजाद में,
सफ़र-इ-जिंदगी यूँ ही रवां रहा,
वक़्त कट'ता रहा, दर्द बढ़ता रहा,

मेरी आँखों में हलकी सी नमी थी,
उसकी जिंदगी में थोडी सी कमी,

उस की आना शिकस्त खुर्दा,
और मेरी जिद्द रेजा रेजा....!!!!

Friday, September 25, 2009

Soorat Nikhar Jati Hai

जिधर भी देखता हूँ तन्हाई नज़र आती है,
आपके इंतजार में हर शाम गुज़र जाती है,

मैं कैसे करूँ गिला दिल के ज़ख्मों से हुज़ूर,
आंसू छलकते है मेरी सूरत निखर जाती है,

रो के हलके हो लेते है ज़रा सी तेरी याद में,
ज़रा सी नामुरादों की तबीयत सुधर जाती है,

असर करती यकीनन गर छु जाती उनके दिल को लेकिन,
अफ़सोस के आह मेरी फिजाओं ही में बिखर जाती है,

मै कदे में जब भी ज़िक्र आता है तेरे नाम का,
शाम की पी हुई सर-ए-शाम ही उतर जाती है,

कभी आ के मेरे ज़ख्मों से मुकाबिला तो कर,
ए ख़ुशी तू मुंह छुपा कर किधर जाती है,

तुझे इन्ही काँटों पे चल के जाना होगा,
उनके घर को बस यही एक राहगुजर जाती है...!!!

Wednesday, September 16, 2009

दीवाने थे मतवाले थे - Deewane The Matwale The

इक खाब सुहाना टूट गया, एक ज़ख्म अभी तक बाकी है,
जो अरमा थे सब ख़ाक हुए, बस राख अभी तक बाकी है,

जब उड़ते थे परवाज़ थी, सूरज को छूने निकले थे,
सब पंख हमारे झुलस गए, पर चाह अभी तक बाकी है,

पर्वत से अक्खड़ रहते थे, तूफानों से भीड़ जाते थे,
तिनको के जैसी बिखर गए, पर ताव अभी तक बाकी है,

लहरों से बहते थे हरदम, दीवाने थे मतवाले थे,
दिन गुज़र गए वो मस्ताने, पर याद अभी तक बाकी है...!!!

हर सजा हमें मंज़ूर है - Har Saza Hamein Manzoor Hai

हर सांस में उसका नूर है,
पर दीद से कितना दूर है,
चलो चाँद से बात करें,
वो क्यों इतना मग़रूर है,
रोज़ ० शब् पत्थर सोते,
नक्काश मगर मजबूर है,
जाना खली हाथ है सबको,
ज़माने का दस्तूर है,
दगा कलम से नहीं करेंगे,
हर सजा हमें मंज़ूर है,
पता पूछती है रुसवाई
नाम जिसका मशहूर है,
दर्द वो जाने क्या ज़ुल्मत का,
हर पल जहाँ पे नूर है,
तुम भी सो जाओ अहसास,
अभी शब् जरा मखमूर है...!!!

मेरी जिंदगी की किताब से - Meri Zindgi Ki Kitab Se

ये अकेलेपन की उदासियाँ ये फिराक लम्हे अजाब के,
कभी दस्त-ए-दिल पे भी आ रुकें तेरी चाहतों के काफिले,

मैं हूँ तुझको जान से अजीज मैं ये कैसे मान लूं अजनबी,
तेरी बात लगती है वहम सी तेरे लफ्ज़ लगते है ख्वाब से,

ये जो मेरा रंग है रूप है यूं ही बेसबब नहीं दोस्तों,
मेरे खुशबुओं से है सिलसिले मेरी निस्बतें हैं गुलाब से,

वोही मोतबर है मेरे लिए वो ही हासिल-ए-दिल ओ जान है,
वो जो बाब तुमने चुरा लिया मेरी जिंदगी की किताब से...!!!


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Wednesday, September 9, 2009

सारा खेल ही लफ्जों का है - Lafz

कड़वे होते हैं,
मीठे होते हैं,
सचे होते हैं,
झूठे होते हैं,
ज़हरीले होते हैं,
नशीले होते हैं,
जादू कर देते हैं,
पागल कर देते हैं,
कटीले होते हैं,
नुकीले होते हैं,
कहीं मातम कर देते हैं,
कहीं खुशियाँ भर देते हैं,

सारा खेल ही लफ्जों का है...!!!

उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वाले - Umeed Dilate Hain Zamane Wale

यूँ ही उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वाले,
कब पलटते हैं भला छोड़ के जाने वाले,

तू कभी देख झुलसते हुए सेहरा में दरख्त,
कैसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले,

उन से आती है तेरे लम्स की खुशबु अब तक,
ख़त निकाले हुए बैठा हूँ पुराने वाले,

आ कभी देख ज़रा उन की शबों में आकर,
कितना रोते हैं ज़माने को हंसाने वाले,

कुछ तो आँखों की ज़ुबानी भी कहे जाते हैं,
राज़ होते नहीं सब मुंह से बताने वाले,

आज न चाँद ना तारा है ना जुगनू कोई,
राब्ते ख़तम हुए उन से मिलाने वाले...!!!

घर आओ किसी दिन - Ghar Aao Kisi Din

चेहरे पे मेरे जुल्फ को फैलाओ किसी दिन,
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन,

राजों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब्,
दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन,

पैरों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लो,
बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन,

खुशबू की तरह गुजरो मेरे दिल की गली से,
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन,

फिर हाथ की खैरात मिले बंद कुबा को,
फिर लुत्फ़ शब्-ए-वस्ल को दोहराओ किसी दिन,

गुजरें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे,
कुछ इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन,

मैं अपनी हर इक सांस उसी रात को दे दूं,
सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन...!!!

Tuesday, September 1, 2009

बेगाना कर गया हमको (Begana Kar Gaya Humko)

कभी है तल्ख़ सा लहजा कभी सबा की तरह,
मिजाज अपना बदलता है वो हवा की तरह,

वो अपने आप से बेगाना कर गया हमको,
एक अजनबी जो मिला खास आशना की तरह,

क़दम क़दम पे भटकना कबूल है मुझको,
अगर तू साथ रहे मेरे रहनुमा की तरह,

हम उस की याद की दिल से लगा के जी लेंगे,
भुला सके तो भुला दे वो बेवफा की तरह....!!!


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