ये अकेलेपन की उदासियाँ ये फिराक लम्हे अजाब के,
कभी दस्त-ए-दिल पे भी आ रुकें तेरी चाहतों के काफिले,
मैं हूँ तुझको जान से अजीज मैं ये कैसे मान लूं अजनबी,
तेरी बात लगती है वहम सी तेरे लफ्ज़ लगते है ख्वाब से,
ये जो मेरा रंग है रूप है यूं ही बेसबब नहीं दोस्तों,
मेरे खुशबुओं से है सिलसिले मेरी निस्बतें हैं गुलाब से,
वोही मोतबर है मेरे लिए वो ही हासिल-ए-दिल ओ जान है,
वो जो बाब तुमने चुरा लिया मेरी जिंदगी की किताब से...!!!
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