कुछ कहना था, उसे भी और मुझे भी,
उस ने ये चाहा मैं कुछ कहूँ, मेरी ये जिद्द के बात वो करे,
यही सोचते सोचते ज़माने बीत गए,
न उस की आना टूटी, और ना मेरी जिद्द,
उस की आना फसील थी, तो मेरी भी चट्टान,
आना और जिद्द के इसी ताजाद में,
सफ़र-इ-जिंदगी यूँ ही रवां रहा,
वक़्त कट'ता रहा, दर्द बढ़ता रहा,
मेरी आँखों में हलकी सी नमी थी,
उसकी जिंदगी में थोडी सी कमी,
उस की आना शिकस्त खुर्दा,
और मेरी जिद्द रेजा रेजा....!!!!
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