हर सांस में उसका नूर है,
पर दीद से कितना दूर है,
चलो चाँद से बात करें,
वो क्यों इतना मग़रूर है,
रोज़ ० शब् पत्थर सोते,
नक्काश मगर मजबूर है,
जाना खली हाथ है सबको,
ज़माने का दस्तूर है,
दगा कलम से नहीं करेंगे,
हर सजा हमें मंज़ूर है,
पता पूछती है रुसवाई
नाम जिसका मशहूर है,
दर्द वो जाने क्या ज़ुल्मत का,
हर पल जहाँ पे नूर है,
तुम भी सो जाओ अहसास,
अभी शब् जरा मखमूर है...!!!
No comments:
Post a Comment