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Wednesday, September 9, 2009

घर आओ किसी दिन - Ghar Aao Kisi Din

चेहरे पे मेरे जुल्फ को फैलाओ किसी दिन,
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन,

राजों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब्,
दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन,

पैरों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लो,
बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन,

खुशबू की तरह गुजरो मेरे दिल की गली से,
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन,

फिर हाथ की खैरात मिले बंद कुबा को,
फिर लुत्फ़ शब्-ए-वस्ल को दोहराओ किसी दिन,

गुजरें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे,
कुछ इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन,

मैं अपनी हर इक सांस उसी रात को दे दूं,
सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन...!!!

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