इश्क सेहा है के दरिया कभी सोचे वो भी,
उस से क्या है मेरा नाता कभी सोचे वो भी,
हाँ मैं तन्हा हूँ ये इकरार भी कर लेता हूँ,
खुद भी वो तन्हा है कितना कभी सोचे वो भी,
ये अलग बात है के जताया नहीं मैंने उस को,
वरना कितना उसे चाहा कभी सोचे वो भी,
उसे आवाज़ लिखा, चाँद लिखा, फूल लिखा,
मैंने क्या क्या उसे लिखा कभी सोचे वो भी,
मुतमें हूँ उसे लफ्जों की हरारत दे कर,
मैंने कितना उसे सोचा कभी सोचे वो भी...!!!
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