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Thursday, August 27, 2009

शायद नींद आ जाये (Shayad Neend Aa Jaye)

ज़रा सी रात ढल जाये तो शायद नींद आ जाये,
ज़रा सा दिल बहल जाये तो शायद नींद आ जाये,

अभी तो कुर्ब है बेचैनी है बेक़रारी है,
तबीयत कुछ संभल जाये तो शायद नींद आ जाये,

अभी तो नरम झोंकों में छुपे है तीर यादों के,
हवा का रुख बदल जाये तो शायद नींद आ जाये,

ये हँसता और मुस्कुराता काफिला चाँद और तारों का,
ज़रा आगे निकल जाये तो शायद नींद आ जाये,

ये तूफ़ान आंसुओं का जो उभर आया है पलकों पर,
किसी सूरत से टल जाये तो शायद नींद आ जाये...!!!


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