Ye chubhan akelepan ki, Ye lagan udas shab se,
Main hawa se lad raha hoon, Tujhe kya bataun kab se,
Ye sahar ki sazishen thi, Ke ye inteqam-e-shab tha,
Mujhe zindgi ka suraj, Na bacha saka gazab se,
Tere naam se shifa ho, Koi zakhm wo ata kar,
Mere nama bar! mile to, Use kehna ye adab se,
Wo jawan ruton ki shama'en, Kahan kho gayi hain,
Main to bujh ke reh gaya hoon, Tu bichhad gaya hai jab se...!!!
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ये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब् से,
मैं हवा से लड़ रहा हूँ, तुझे क्या बताऊँ कब से,
ये सहर की साजिशें थी, के ये इन्तेकाम-ए-शब् था,
मुझे जिंदगी का सूरज, ना बचा सका गज़ब से,
तेरे नाम से शिफा हो, कोई ज़ख्म वो अता कर,
मेरे नामा बार मिले तो, उसे कहना ये अदब से,
वो जवान रुतों की शमाएँ, खो गई जाने कहाँ,
मैं तो बुझ के रह गया हूँ, तू बिछड़ गया है जब से...!!!
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