Mijaz hum se jyada juda na tha uska,
Jab apne taur yahi the to kya gila uska,
Wo apne zuam mein tha be-khabar raha mujh se,
Use gumaa bhi nahi main nahi raha uska,
Wo barq-rao tha magar rah gaya kaha jane,
Ab intezaar karenge shikasta-paa uska,
Chalo ye sail-e-bala khiyez hi bane apna,
Safina uska, khuda uska, na khuda uska,
Ye ahle-dard bhi kis ki duhai dete hain,
Wo chup bhi ho to zamana hai, hum nawa uska,
Humee ne tark-e-taluq mein pahal ki ke 'Faraz',
Wo chahta tha magar hausla na tha us ka...!!!
'Ahmad Faraz'
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मिजाज़ हम से ज्यादा जुदा ना था उसका,
जब अपने तौर यही थे तो क्या गिला उसका,
वो अपने जूआम में था बेखबर रहा मुझ से,
उसे गुमां भी नहीं मैं नहीं रहा उसका,
वो बर्ग-राव था मगर रह गया कहाँ जाने,
अब इंतज़ार करेंगे शिकस्ता-पा उसका,
चलो ये सेल-ए-बला खियेज़ ही बने अपना,
सफीना उसका, खुदा उसका, ना खुदा उसका,
ये अहल-ए-दर्द भी किस की दुहाई देते हैं,
वो चुप भी हो तो ज़माना है हमनवा उसका,
हमी ने तर्क-ए-ताल्लुक में पहल की के 'फ़राज़',
वो चाहता था मगर हौसला ना था उसका...!!!
'अहमद फराज़'
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